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Electro Acoustic Transducers In Hindi

इलेक्ट्रो ध्वनिक ट्रांसड्यूसर हिंदी में।

 परिचय (Introduction) : 

एक स्कूल के मंच पर एक भाषण प्रतियोगिता चल रही थी। कक्षा ६: की एक छोटी सी लड़की माइक के सामने खड़े होकर अपनी speech बोल रही थी। मंच के सामने बच्चों के parents बैठे हुए थे। जैसे ही उस लड़की का भाषण समाप्त हुआ, वह अपने पिता के पास आकर बैठ गई। कौतूहलवश, उसके मन में एक प्रश्न उठा। वह अपने पापा से पूछने लगी कि पापा, यह बताइये कि इस माइक से बोलने पर आवाज़ तेज़ क्यों सुनाई पड़ती है। अगर हम बिना माइक के बोलते हैं, तो आवाज़ अधिक दूर तक सुनाई नहीं दे सकती। किन्तु माइक पर बोलने से आवाज़ बहुत दूर तक जा सकती है, ऐसा क्यों? उसके पिता उसे समझाने लगे कि माइक्रोफोन से आवाज़ को वैद्युत सिगनल में बदला जाता है, तथा फिर उसे प्रवर्धित करके लाउडस्पीकर को दिया जाता है तथा लाउडस्पीकर से तेज़ ध्वनि सुनाई देती है। उस लड़की की जिज्ञासा पूरी तरह शान्त नहीं हुई। उसने पूछा कि अच्छा यह बताइये कि DVD और MP3 में आवाज कैसे स्टोर हो जाती है? इसी प्रकार की कई जिज्ञासायें अक्सर प्रश्न बनकर कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में उठती रहती हैं क्योंकि इलैक्ट्रॉनिक्स के कई उपकरण हमारे आस-पास मौजूद रहते हैं। इन सब उपकरणों को इलैक्ट्रॉनिक्स की जिस शाखा में अध्ययन किया जाता है, उसको consumer electronics कहा जाता है।


"Consumer Electronics refers to the devices containing electronic circuit boards for everyday use by individuals, like television, digital cameras, calculators, VCRS, DVDs, Audio devices, headphones etc."

ध्वनि के अभिलक्षण (Characteristics of Sound In Hindi) :

ध्वनि वास्तव में एक आश्चर्यजनक चीज़ है। वातावरण में जितनी ध्वनियाँ हम सुनते हैं, वह वायु में बहुत छोटे-छोटे दाब परिवर्तनों से उत्पन्न होती हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि वायु इन pressure differences (दाब परिवर्तनों) को इतनी कुशलता से संचरित (transmit) करती है, जिससे यह pressure charges लम्बी दूरी तक बहुत accurately (बिना किसी त्रुि के) transmit हो जाते हैं। इस accurate transmission के कारण ही बोलने वाला जो बोलता है, दूर खड़ा श्रोता (सुनने वाला) उसको सुन सकता है।

ध्वनि एक longitudinal wave होती है जिसमें compressions तथा rarefactions (सम्पीडन तथा विरलन) होते हैं  जब ध्वनि तरंगें ear drum (कान के पर्दे) पर strike (चोट) करती हैं, तो यह वैद्युत तरंगें बन जाती हैं तथा nerves- (नसों) की सहायता से दिमाग

तक पहुँचती है जिससे ध्वनि का interpretation (अर्थ निकालना) होता है। Wave motion होने के कारण sound wave में तरंग की सभी खूबियाँ मौजूद होती (amplitude, frequency, velocity, wavelength, phase इत्यादि)। Audible sound wave (श्रव्य ध्वनि तरंगों) की आवृत्ति 16 Hz से 20 kHz तक होती है। ध्वनि तरंगें वायु में 0°C - 332 m/s तथा 20°C पर 344 m/s प्रति सैकैण्ड के वेग (velocity) से चलती हैं। ताप तथा के में संबंध निम्नवत् होता है-

                                     V2= V₁

जहाँ


V₁= velocity at temperature T₁ 

V2= velocity at temperature T₂ 

(T₁ and T₂ are expressed in Kelvins)

ध्वनि की गति medium (माध्यम) पर भी निर्भर करती है। सामान्य ताप पर, ध्वनि की ग वायु में 344 m/s, जल में 1480 m/s लकड़ी (wood) में 3500 m/s, ग्लास में 5200 m/s स्टील में 5500 m/s होती है।

ध्वनि तरंगें वायु में दाब परिवर्तन (pressure variations) उत्पन्न करती हैं। यह variatio compression तथा rarefactions के रूप में होते हैं। साउन्ड की तीव्रता (intensity) जित अधिक होगी, compression व rarefaction उतना ही अधिक होगा। अतः, ध्वनि का आय (amplitude of sound) दाब के मात्रक के रूप में व्यक्त किया जाता है (N/m² या Pas (Pa))। यह micro-bar या dynes प्रति वर्ग सेमी के रूप में भी व्यक्त किया जाता है (1 = 10 micro-bar)|

ऊर्जा के terms में, साउन्ड तरंगों की तीव्रता तरंगों की गति की दिशा के लम्ब (perpendicular) एक वर्ग मीटर क्षेत्रफल में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा के औसत प्रवाह क को कहा जाता है। ध्वनि ऊर्जा की तीव्रता watt/m² में व्यक्त की जाती है तथा यह आया वर्ग के समानुपाती होती है। साउन्ड की तीव्रता को सामान्यतः decibels (या dB) में व्यक्त जाता है (threshold of hearing के सापेक्ष)। डेसीबल का उपयोग लघुगणक आधार (logarithmic basis) पर दो powers की तुलना करने हेतु किया जाता है। यदि दो पॉवर का मान क्रमशः P तथा P₂ है तो decibel में इन्हें निम्नवत् व्यक्त किया जाता है-

Decibels for powers P and P₂ = 10 log P₂/  P₁

 उदाहरणतः यदि पॉवर P₂ पॉवर P, की एक हजार गुना है में 10 log( P₂/  P₁=1000) तो decibels 2 = 10 log P₂/  P₁ 1000 = 30 dB अर्थात् decibel scale पर पॉवर P₂ पॉवर P₁ से 30 dB अधिक (या ऊपर) है। इसी प्रकार voltages या currents ratio को decibel में कनवर्ट करने हेतु 20log तथा 20 log सूत्र प्रयुक्त किये जाते हैं।


कुछ सामान्य ध्वनियों की तीव्रतायें (Intensity of Some Typical Sounds In Hindi)-

जब ध्वनि का दाब 20 × 10 N/m² (तथा तीव्रता = 10-12 W/m²) होता है, तो मनुष्य इसको just सुन सकता है अर्थात् यह न्यूनतम ध्वनि का दाब (तथा तीव्रता) है जो मनुष्य के कानों द्वारा महसूस की जा सकती है। इससे कम दाब तथा तीव्रता होने पर मनुष्य उसको सुन न सकेगा। अतः इस ध्वनि को just audible sound तथा ध्वनि के इस स्तर को threshold of hearing कहते हैं। इसी प्रकार 63 N/m² दाब (तथा 10 W/m² तीव्रता ) वाली ध्वनि मनुष्य के कानों में वेदना उत्पन्न करती है तथा यह स्तर threshold of pain (या threshold of feeling) कहलाता है। अन्य ध्वनियाँ इन दोनों स्तरों के बीच होती हैं.

मनुष्य के कर्णों की ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता (Sensitivity of Human Ear for Sound In Hindi) 

मनुष्य के कान ध्वनि तीव्रता के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं। यह threshold of hearing से 10 dB नीचे (0.1pW/m²) तक की ध्वनि तीव्रता को महसूस कर सकते हैं। ध्वनि की यह तीव्रता (0.1 pW/m²) ear drum के diaphragm (कान के पर्दे) में 10-12 m (1) picometer) का movement ला देती है।

लेकिन मनुष्य के कान ध्वनि की तीव्रता के absolute value के बजाय आनुपातिक तीव्रता (ratio or dB) के प्रति संवेदनशील हैं। फुसफुसाहट (whisper) के दौरान तीव्रता picowatts मे तथा शोरगुल के समय milliwatts में होती है। अतः, किसी ध्वनि पुनरोत्पादन सिस्टम के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह मूल साउन्ड के समान तीव्रता उत्पन्न करे, बल्कि जरुरी यह है कि वह अधिकतम तथा न्यूनतम में मध्य आनुपातिक तीव्रता maintain रखे, अर्थात् सभी ध्वनियों को same ratio में amplify करें। अर्थात् यदि मूल स्रोत की दो ध्वनियों की तीव्रता का अनुपात 1:5 है तो आउटपुट में भी इन ध्वनियों की तीव्रता 15 ही मिलनी चाहिये।

हालांकि कान ध्वनि के प्रति संवेदनशील होते हैं किन्तु 1 dB से कम की तीव्रता वाले दो sounds के बीच भेद नहीं कर सकते। कान masking की विशेषता भी रखते हैं अर्थात् louder sound weaker sound को दबा देता है। इसी प्रकार एक अन्य विशेषता यह है कि ध्वनि की दिशा पहले पहुँचने वाले sound से judge होती है, भले ही वह weaker (कमजोर) sound क्यों न हो।


लाउडनैस तथा फोन (Loudness and Phon In Hindi)- 

कानों द्वारा judge की गई ध्वनि की तीव्रता loudness कहलाती है। चूंकि कान निम्न आवृत्तियों के प्रति उच्च आवृत्तियों की तुलनामें कम sensitive होते हैं, अतः same loudness उत्पन्न करने हेतु low frequency sound की तीव्रता (उच्च आवृत्तियों के सापेक्ष) अधिक होनी चाहिये। अतः loudness साउन्ड की intensity के साथ-साथ frequency पर भी निर्भर करती है। 1000 Hz पर किसी sound की intensity की loudness (dB में) phon कहलाती है। अतः यदि 40 Hz पर 60 dB वही loudness प्रदान करता है जो कि 1000 Hz पर 0 dB प्रदानकरता है, तो loudness दोनो स्थितियों में zero phon ही होगी। सोन (Sone)-1000 Hz पर 40 dB (अर्थात् 40 phon) द्वारा उत्पन्न loudness को sone कहा जाता है। Sone के मान में 3 dB की increase 10 phon के तुल्य होती है।

Sone (L) तथा phon (P) के मध्य सम्बन्ध निम्नवत् है -

                                    10 log L-(P-40) log 2

ओवरटोन तथा टिम्बर (Overtone and Timbre In Hindi ):

स्पीच एवं वाद्ययंत्रों द्वारा उत्पन्न ध्वनि तरंगों शुद्ध ज्या तरंगें (sine waves) नहीं होतीं बल्कि कम्पलैक्स तरंगें (मिश्रित) होती हैं जिनमें मूल आवृत्तियों (fundamental frequencies) के अतिरिक्त उनके हारमोनिक्स (fundamental के गुणक) तथा अन्य आवृत्तियों की तरंगे भी होती है। मूल आवृत्ति के अतिरिक्त उपस्थित तरंगे अधिस्वर (overtones) कहलाती है। किसी भी ध्वनि की विशेषता एवं अभिलक्षण उसमें उपलब्ध टोन एवं ओवरटोन के द्वारा निर्धारित होते हैं। जब हम अपने किसी परिचित की वाणी सुनते हैं तब उसे तुरन्त पहचान लेते हैं। ध्वनि का यह गुण टिम्बर (timbre) कहलाता है तथा यह ध्वनि में विद्यमान ओवरटोन अनुपात से सम्बन्धित है।


पुरूषों की बोलने की ध्वनियों की मूल आवृत्ति 110 Hz तथा 1500 Hz के मध्य होती है जबकि महिलाओं की 220 Hz से 1500 Hz होती है (यदि overtones को भी शामिल किया जाये तो 110 Hz से 8000 Hz तक पुरुषों की तथा 220 Hz से 10000 Hz तक महिलाओं की)। कुछ अन्य ध्वनियों की आवृत्ति सीमाएँ (ओवरटोन सहित) निम्नवत् हैं-


  1. Normal Room Noise            ;       30 Hz-16 kHz
  2. Normal Machine Noise        :       16 Hz-20 kHz
  3. Normal Hand Clapping        :        100 Hz-15 kHz
  4. Normal Foot Steps               :         80 Hz-15 kHz
  5. Normal Whistle                    :         1 kHz-20 kHz


ऑक्टेव तथा डिकेड (Octave and Decade In Hindi):

दो आवृत्तियों का अनुपात interval कहलाता है। यदि यह अनुपात 1:2 का है तो octave कहलाता है, तथा यदि 1 10 का है तो decade कहलाता है। यदि दो आवृत्तियों तथा 2 हैं तो तथा 2 के मध्य octaves तथा decades की संख्या No. of octaves = log2    of decades = log10 (